काव्यगुण लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
काव्यगुण लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 26 नवंबर 2016

काव्य गुण ( शब्द गुण )

काव्य गुण ( शब्द गुण )

प्रश्न :- काव्य - गुण  किसे कहते हैं ? 

उत्तर :- काव्य में आंतरिक सौन्दर्य तथा रस के प्रभाव एवं उत्कर्ष के लिए स्थायी रूप से विद्यमान  मानवोचित भाव  और धर्म या तत्व  को काव्य गुण ( शब्द गुण ) कहते हैं । यह काव्य में उसी प्रकार विद्यमान होता है , जैसे फूल में सुगन्धि। 

प्रश्न :- काव्य - गुण  कितने प्रकार के होते हैं ? प्रयेक का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए । 

उत्तर :-  काव्य गुण मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं -  1. माधुर्य  2. ओज  3. प्रसाद 
 1. माधुर्य गुण - किसी काव्य को पढने या सुनने से ह्रदय में मधुरता का संचार होता है , वहाँ माधुर्य गुण होता है ।  यह गुण विशेष रूप से श्रृंगार, शांत, एवं करुण रस में पाया जाता है । 
         माधुर्य गुण युक्त काव्य में कानों को प्रिय लगने वाले मृदु  वर्णों  का प्रयोग होता है  जैसे - क,ख, ग, च, छ, ज, झ, त, द, न, .... आदि । इसमें कठोर एवं संयुक्ताक्षर वाले वर्णों का प्रयोग नहीं किया जाता । 
 उदाहरण  1.  
बसों मोरे नैनन में नंदलाल 
मोहनी मूरत सांवरी सूरत नैना बने बिसाल । 
उदाहरण  2.  
कंकन किंकिन नूपुर धुनि सुनि। 
कहत लखन सन राम हृदय गुनि ॥ 
उदाहरण  3. 
पानी केरा बुदबुदा अस मानुष की जात । 
देखत ही छिप जाएगा ज्यों तारा परभात । । 

2. ओज गुण - जिस  काव्य को पढने या सुनने से ह्रदय में ओज, उमंग और उत्साह का संचार होता है, उसे ओज गुण प्रधान काव्य कहा जाता  हैं । इस प्रकार के काव्य में कठोर संयुक्ताक्षर वाले वर्णों का प्रयोग होता है । 
जैसे - ट, ठ, ड, ढ,ण  एवं र के संयोग से बने शब्द , सामासिक शब्द आदि ।  यह गुण मुख्य रूप से वीर, वीभत्स और भयानक रस में पाया जाता है । 
उदाहरण 1.  
बुंदेले हर बोलों के मुख से हमने सुनी कहानी थी । 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी । 
उदाहरण 2.   
हिमाद्रि तुंग श्रृंग  से प्रबुध्द शुध्द भारती । 
स्वयं प्रभा, समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती । 
उदाहरण 3.   
क्रांतिधात्रि ! कविते जाग उठ आडम्बर में आग लगा दे । 
पतन पाप पाखण्ड जलें , जग में ऐसी ज्वाला सुलगा दे । 

3. प्रसाद गुण :-  प्रसाद का अर्थ है  - निर्मलता , प्रसन्नता । जिस काव्य को पढ़ने या सुनने से हृदय या मन खिल जाए , हृदयगत शांति का बोध हो, उसे प्रसाद गुण कहते हैं । इस गुण से युक्त काव्य सरल, सुबोध एवं सुग्राह्य होता है । यह सभी रसों में पाया जा सकता है ।  
उदाहरण 1.  
जीवन भर आतप सह वसुधा पर छ्या करता है । 
तुच्छ पत्र की भी स्वकर्म में कैसी तत्परता है । 
उदाहरण 2.  
हे प्रभो ज्ञान दाता ! ज्ञान हमको दीजिए । 
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए । 
उदाहरण 3.  
उठो लाल ! अब आँखें खोलो । 
पानी लाई , मुँह धोलो । 
बीती रात कमल दल फूले 
उनके ऊपर भौंरे झूले ।