काव्य गुण ( शब्द गुण )
प्रश्न :- काव्य - गुण किसे कहते हैं ?
उत्तर :- काव्य में आंतरिक सौन्दर्य तथा रस के प्रभाव एवं उत्कर्ष के लिए स्थायी रूप से विद्यमान मानवोचित भाव और धर्म या तत्व को काव्य गुण ( शब्द गुण ) कहते हैं । यह काव्य में उसी प्रकार विद्यमान होता है , जैसे फूल में सुगन्धि।
प्रश्न :- काव्य - गुण कितने प्रकार के होते हैं ? प्रयेक का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए ।
उत्तर :- काव्य गुण मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं - 1. माधुर्य 2. ओज 3. प्रसाद
1. माधुर्य गुण - किसी काव्य को पढने या सुनने से ह्रदय में मधुरता का संचार होता है , वहाँ माधुर्य गुण होता है । यह गुण विशेष रूप से श्रृंगार, शांत, एवं करुण रस में पाया जाता है ।
माधुर्य गुण युक्त काव्य में कानों को प्रिय लगने वाले मृदु वर्णों का प्रयोग होता है जैसे - क,ख, ग, च, छ, ज, झ, त, द, न, .... आदि । इसमें कठोर एवं संयुक्ताक्षर वाले वर्णों का प्रयोग नहीं किया जाता ।
उदाहरण 1.
बसों मोरे नैनन में नंदलाल
मोहनी मूरत सांवरी सूरत नैना बने बिसाल ।
उदाहरण 2.
कंकन किंकिन नूपुर धुनि सुनि।
कहत लखन सन राम हृदय गुनि ॥
उदाहरण 3.
पानी केरा बुदबुदा अस मानुष की जात ।
देखत ही छिप जाएगा ज्यों तारा परभात । ।
उदाहरण 3.
पानी केरा बुदबुदा अस मानुष की जात ।
देखत ही छिप जाएगा ज्यों तारा परभात । ।
2. ओज गुण - जिस काव्य को पढने या सुनने से ह्रदय में ओज, उमंग और उत्साह का संचार होता है, उसे ओज गुण प्रधान काव्य कहा जाता हैं । इस प्रकार के काव्य में कठोर संयुक्ताक्षर वाले वर्णों का प्रयोग होता है ।
जैसे - ट, ठ, ड, ढ,ण एवं र के संयोग से बने शब्द , सामासिक शब्द आदि । यह गुण मुख्य रूप से वीर, वीभत्स और भयानक रस में पाया जाता है ।
उदाहरण 1.
बुंदेले हर बोलों के मुख से हमने सुनी कहानी थी ।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी ।
उदाहरण 2.
हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुध्द शुध्द भारती ।
स्वयं प्रभा, समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती ।
उदाहरण 3.
क्रांतिधात्रि ! कविते जाग उठ आडम्बर में आग लगा दे ।
पतन पाप पाखण्ड जलें , जग में ऐसी ज्वाला सुलगा दे ।
उदाहरण 3.
क्रांतिधात्रि ! कविते जाग उठ आडम्बर में आग लगा दे ।
पतन पाप पाखण्ड जलें , जग में ऐसी ज्वाला सुलगा दे ।
3. प्रसाद गुण :- प्रसाद का अर्थ है - निर्मलता , प्रसन्नता । जिस काव्य को पढ़ने या सुनने से हृदय या मन खिल जाए , हृदयगत शांति का बोध हो, उसे प्रसाद गुण कहते हैं । इस गुण से युक्त काव्य सरल, सुबोध एवं सुग्राह्य होता है । यह सभी रसों में पाया जा सकता है ।
उदाहरण 1.
जीवन भर आतप सह वसुधा पर छ्या करता है ।
तुच्छ पत्र की भी स्वकर्म में कैसी तत्परता है ।
उदाहरण 2.
हे प्रभो ज्ञान दाता ! ज्ञान हमको दीजिए ।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए ।
उदाहरण 3.
उठो लाल ! अब आँखें खोलो ।
पानी लाई , मुँह धोलो ।
बीती रात कमल दल फूले
उनके ऊपर भौंरे झूले ।