शब्द शक्ति
प्रश्न :- शब्द शक्ति किसे कहते हैं ?
उत्तर :- शब्दों के अंतर्निहित अर्थ को बोध कराने वाली शक्ति , शब्द शक्ति कहलाती हैं। दूसरे शब्दों में शब्दों के विभिन्न अर्थ बताने वाले व्यापर या साधन को शब्द शक्ति कहते हैं । किसी सार्थक शब्द के तीन अर्थ निकलते हैं - वाच्यार्थ , लक्ष्यार्थ और व्यंग्यार्थ ।
प्रश्न :- शब्द शक्ति के कितने प्रकारहोते हैं ? उदाहरण सहित समझाइए ।
उत्तर :- शब्द शक्ति के तीन प्रकार हैं - 1. अभिधा 2. लक्षणा 3. व्यंजना
1. अभिधा - जिस शब्द शक्ति द्वारा किसी शब्द का सीधा एवं प्रचलित अर्थ ज्ञात हो , उसे अभिधा शब्द शक्ति कहते हैं । इस अर्थ को वाच्यार्थ भी कहा जाता है ।
उदाहरण
1. अपना घर सबको प्यारा लगता है ।
2. मेरे पास एक गाय है ।
3. मेरा घर गंगा के किनारे पर बसा है ।
4. राजेश बीमार है ।
5. कौन के सुत ? बालि के , ( अंगद रावण संवाद )
6. चारु चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल- थल में।
6. चारु चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल- थल में।
2. लक्षणा - जब किसी शब्द का सीधा या प्रचलित अर्थ न होकर कोई अन्य लाक्षणिक अर्थ होता है, तो वहाँ लक्षणा शक्ति की अभिव्यजना होती है। इस शब्द शक्ति में वाच्यार्थ या मुख्यार्थ अर्थ न होकर लक्ष्यार्थ होता है। इसके चार भेद हैं - 1. रूढा लक्षणा 2. प्रयोजनवती लक्षणा 3. उपादान लक्षणा 4. लक्षण- लक्षणा उदाहरण
1. वीरू शेर है
२. सारा घर मेला देखने गया है ।
3. मेरा घर गंगा पर बसा है ।
4. रमेश के कान नहीं है ।
5. है कहाँ वह वीर ? अंगद 'देवलोक बताइयो' ।
6. 'बालि बली' छल सों ,
'भृगुनन्दन गर्व हरयो', 'द्विज दीन महा' ।
6. 'बालि बली' छल सों ,
'भृगुनन्दन गर्व हरयो', 'द्विज दीन महा' ।
3. व्यंजना - जब किसी शब्द के अनेक या विशिष्ट अर्थ निकलते हों या व्यंजित होते हों , वहाँ व्यंजना शब्द शक्ति होती है । इसमें शब्द का व्यंग्यार्थ लिया जाता है । यह व्यंजना दो प्रकार की होती है - शाब्दी व्यंजना और आर्थी व्यंजना ।
उदाहरण
1. सन्ध्या हो गई
2. इंदौर मध्यप्रदेश का मुंबई है ।
3. रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून ।
पानी गए न ऊबरे मोती, मानुष, चून ।।
4. 'सिंधु तरयो उनको बनरा , तुम पै धनु रेख गई न तरी' ।
5. चरण धरत चिन्ता करत , चितवत चारों ओर ।
सुवर्ण को खोझत फिरत कवि,व्यभिचारी, चोर । ।
6. तुम तो सखा स्यामसुंदर के सकल जोग के ईश |
7. कढ़िगौ अबीर पै अहीर तो कढ़ै नहीं।
4. 'सिंधु तरयो उनको बनरा , तुम पै धनु रेख गई न तरी' ।
5. चरण धरत चिन्ता करत , चितवत चारों ओर ।
सुवर्ण को खोझत फिरत कवि,व्यभिचारी, चोर । ।
6. तुम तो सखा स्यामसुंदर के सकल जोग के ईश |
7. कढ़िगौ अबीर पै अहीर तो कढ़ै नहीं।